ओ३मशास इत्था महाँ अस्यमित्रखादो अदभुत:न यस्य हन्यते सखा न जीयते कदाचनऋग्वेद 10.152.1
शब्दार्थ:
शास:=अनुशासन करने वाला
महान+ असि=तूं महान है
अमित्रखाद:=वैर विरोध विनाशक
अद् भुत:=अदभुत= विचित्र
सखा=सखा
न=नहीं
हन्यते= मारा जाता
कदाचन= कभी
जीयते= हानी उठाता है
प्रभो तूं अनुशासन करने वाला है और इसी कारण तूं महान है| वैर विरोध विनाशक और अदभुत= विचित्र है|( तूं ऐसा है कि) जिसका सखा नहीं मारा जाता और न ही कभी हानी उठाता है, या पराजित होता है|
(स्वामी वेदानन्द तीर्थ सरस्वती)
शब्दार्थ:
शास:=अनुशासन करने वाला
महान+ असि=तूं महान है
अमित्रखाद:=वैर विरोध विनाशक
अद् भुत:=अदभुत= विचित्र
सखा=सखा
न=नहीं
हन्यते= मारा जाता
कदाचन= कभी
जीयते= हानी उठाता है
प्रभो तूं अनुशासन करने वाला है और इसी कारण तूं महान है| वैर विरोध विनाशक और अदभुत= विचित्र है|( तूं ऐसा है कि) जिसका सखा नहीं मारा जाता और न ही कभी हानी उठाता है, या पराजित होता है|
(स्वामी वेदानन्द तीर्थ सरस्वती)
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