महर्षि दयानन्द कृत आर्याभिविनयः से (35)
प्रार्थना विषय
सेमं नः काममापृण गोभिरश्वैः शतक्रतोस्तवाम त्वा स्वाध्यः 35
ऋ. 11319
व्याख्यान ..
हे "शतक्रतो" अनन्तक्रियेश्वर ! आप असंख्यात विज्ञानादि यज्ञों से प्राप्य हो, तथा अनन्तक्रियायुक्त हो सो आप "गोभिरश्वैः" गाय उत्तम इन्द्रिय श्रेष्ठ पशु, सर्वोत्तम अश्वविद्या (विज्ञानादियुक्त) तथा अश्व अर्थात श्रेष्ठ घोड़ादि पशुओं और चक्रवर्ती राज्यैश्वर्य से "सेमं, नः, काममापृण" हमारे काम को परिपूर्ण करो फिर हम भी "स्तवामः, त्वा, स्वाध्य" सुबुद्धियुक्त हो के उत्तम प्रकार से आपका स्तवन (स्तुति) करें हम को दृड़ निश्चय है कि आपके बिना दूसरा कोई किसी का काम पूर्ण नहीं कर सकता आपको छोड़के दूसरे का ध्यान वा याचना जो करते हैं, उनके सब काम नष्ट हो जाते हैं 35
From MAHARSHI DAYANAND SARASWATI's 'ARYABHIVINAY'
No comments:
Post a Comment